रात को जब भी अपना सपना अधुरा पाया
जागी आँखों से खुद को अकेला ही पाया
जलती रही शमा तेरे नाम की दिल में अब तक
पर इसकी लौ में खुद को जलता हुआ पाया
तू याद करे ना करे उन लम्हों को कभी
पर शायाद हमने उन लम्हों में अपना जहाँ पाया
लोग कहते है की दीवानगी की भी हद होती है
पर खुद को हर बार इस हद से पार ही पाया
आज भी तेरा नाम आता है इन लबो पर एक तमना बन कर
उठते है हाथ मेरे तेरी ही दुआ दिल से लेकर
तू माने न माने इस बात को कभी लेकिन
तुझे अपने खुदा से बढ़ कर हमने है माना
यह लौ दिल की भुझने का नाम ही नहीं लेती
आँखों से तेरी तस्वीर उतरने का नाम नहीं लेती
हम लाख समझा ले इस पागल दिल को अपने
यह धड़कने जो है वो रुकने का नाम हे नहीं लेती..
हर झुकती पलक तुमसे कहती है वो
दिल में छुपे हमारे हर जस्बात है जो
और तेरे लिए मर मिटने की चाहत है जो
इन अल्फासो में कभी बयान नहीं होती …